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वाणी / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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बचपन के एक सदमे में
आवाज़ खो बैठी
वह लड़की
अब दरवाज़े-दरवाज़े माँग रही है
अपनी वाणी

बच्चे किलककर हँसते हैं
जब वह रोती है गूँगी ।