Last modified on 12 जून 2011, at 23:22

फिर / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 12 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=बेहतर दुनिया के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात है
अँधेरा है
कुआँ है
गहराई है

लोग हैं
नींद है
मज़बूरी है
ख़ामोशी है

केवल एक लाश झूल रही
              चारों ओर
केवल एक अट्टहास गूँज रहा
              चारों ओर

फिर आदमी मारा गया
फिर सेना कर रही है गश्त ।