Last modified on 12 जून 2011, at 23:25

दहशत / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 12 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=बेहतर दुनिया के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैंने उन्हें प्यार करते देखा

चाँदनी कातिक की
और रात एक पारदर्शी झील-जैसी

वे दोनों फूल की तरह थरथरा रहे थे
एक छोटे हरसिंगार के नीचे

मैंने उन्हें प्यार करते देखा

मुझे अचरज हुआ

मैं उनके साहस पर मुग्ध हुआ

मुझे आशंका हुई

मैंने उन्हें प्यार करते देख लिया था ।