Last modified on 14 जून 2011, at 16:47

इस मौसम में! / सत्यनारायण

योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:47, 14 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यनारायण }} {{KKCatNavgeet}} <poem> इस मौसम में कुछ ज़्यादा …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस मौसम में
कुछ ज़्यादा ही तनातनी है।

सच है स्याह
सफ़ेद झूठ
यह आखिर क्या है?

धर्मयुद्ध है
या जेहाद है
या फिर क्या है?
   इतिहासों के
   काले पन्ने खुलते जाते
   नादिरशाहों
   चंग़ेजों की चली बनी है!
रह-रह
बदल रहा है मौसम
दुर्घटना में
लोग हस्तिनापुर में
हों या
हों पटना में
   पानीपत की आँखों में
   अब भी दहशत है
   और आज भी
   नालन्दा में आग़जनी है।
घड़ियालों की
बन आई है
समय नदी में
नये-नये
हो रहे तमाशे
नई सदी में
   लहजे बदले
   इंद्रप्रस्थ में संवादों के
   रंगमंच पर
   फ़नकारों में ग़ज़ब ठनी है।