Last modified on 16 जून 2011, at 16:17

मार्क्सवाद की रोशनी / केदारनाथ अग्रवाल

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 16 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=हे मेरी तुम / केदारनाथ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(मार्क्सवाद की रोशनी में केदारनाथ जी की कविता)

 दोषी हाथ
हाथ जो
चट्टान को
तोडे़ नहीं
वह टूट जाये,

लोहे को
मोड़े नहीं
सौ तार को
जोड़े नहीं
वह टूट जाये।