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शब्द थे / शहंशाह आलम

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हमारे पास सिफारिशें नहीं थीं चाटुकारों की
न झूठ न दिखावा न फूंक कोई अनोखी
बल्कि चुस्त-फुर्तीले शब्द थे विश्वसनीय

हमारी आंखों में नींद नहीं थी
बेफिक्री की गुलामी की
बल्कि रतजगे थे विनम्र और दिलचस्प

हमारी कविता दुख बतियाती
उनकी होती सुनियोजित
सीधे देवलोक से उतरी हुई
इस जलमग्न पृथ्वी के
शासकों का पक्ष लेती हुई

हमारी आदतें होतीं बेतरतीब
कमाल की सबसे अलहदा

हमारा मुख्य दरवाज़ा रहता खुला हमेशा
खिड़कियां खुली हुईं परिंदों के वास्ते

बच्चे खेलते लुका-छिपी का खेल
रंग मनचाहे थे इर्द-गिर्द हमारे
सुबह बिलकुल नई थी रोज़
हमारी क्रियाएं थीं अनुभवों से भरी
हम करते थे प्रेम पूरे यक़ीन से
बजाते थे माउथआर्गन सघन बरसात में
गाते थे पुरानी फ़िल्मों के गाने
जीते थे एकदम आत्मीय करोड़ों बरस से

चूंकि हम लड़ते थे और जीतते थे
चूंकि हम जीते थे एक-एक रात एक-एक दिन
इसीलिए हम मनुष्य नहीं
थे बस इस सदी के आश्चर्य
अपने शत्रुओं के लिए।