नक़्शानवीस ने उठाई क़लम
ज़मीन के नक़्शे के बीच खींची रेखा
और कहा-
'ये हिन्दुस्तान, ये पाकिस्तान'
मज़दूर ले आए काँटेदार तार
सरहद पर खड़ी की बागड़
ये तेरा आँगन, ये मेरा घर
घड़ी भर में ही साथ-साथ रहने वाले
हो गए सीमापार।
ऊँघ रहे सैनिकों ने सँभाल ली बन्दूकें
जब-जब उनके आक़ा हो जाते थे
ऊबे और अनमने
जैसे ही लगता था उन्हें
कि भूल रहे हैं लोग इतिहास
वे चीख़ते थे-- 'फ़ायर'
और बदहवास सैनिक चलाते थे गोलियाँ बेशुमार
बिना यह देखे कि-
कहाँ है निशाना और कौन बेगुनाह मारा गया है
अफ़रा-तफ़री के इस आलम में ?
कुछ दिनों के बाद