तीन महीने तक मँडराता रहा लगातार
मेरे इस घिरे हुए मकान पर
काफी ऊँचाई से एक अदृश्य हैलीकॉप्टर
और राडारी आँखें बचाकर टपकाता रहा
राहत का सामान:
कभी कोई अपनाव भरी-सी नज़र
कभी कोई शर्माई हुई-सी मुस्कान ।
और फुँकारती रहीं
ईर्ष्या की एंटी-एयरक्राफ़्ट गनें
दिशाबोधहीन
चारों ओर
ताकि कहीं कोई हो तो आ गिरे करता हुआ शोर ।
और आज
जब थक गए हैं भौंक-भौंक कर
विमानभेदी तोपों के थूथन
एक तपती हुई दुपहर में
हैलीकॉप्टर उतर आया है
मेरे ऊबड़-खाबड़ आँगन में चुपचाप
और एक नीली आकाशी ख़ुशबू से गमक उठा है
पूरा का पूरा मकान
पूरे तीन महीने एक उचित अवसर की तलाश में
अटकता रहा है मेरी जबान पर
अमृता प्रीतम का एक वाक्य
आज छू पाया है तुम्हारे कान:
"इतना पवित्र शब्द और होठ मेरे जूठे
कैसे कहूँ कि मैं
तुम्हें प्यार......"