रह रहकर उभर आने वाले
मेरे इस निबिड़ अकेलेपन का इलाज क्या है ?
क़िताबें, कविताएँ, रिकार्ड, दोस्त
शराब, लड़कियाँ ?
या पापा की एक अबूझ उदासी को तोड़ने की कोशिश करने वाले
चंचल बच्चे ?
मेरे इस अमूर्त आत्मिक विषाद का इलाज क्या है ?
ये सब उतार लेते हैं कई बार उसकी ऊपरी पर्ते
'यह नहीं, वह' के सारे विकल्प इन्हीं पर्तो से जुड़े हैं
पर इन सब पर्तों के नीचे है
न जाने और कितनी पर्तों वाला
मेरे दर्द का वह नाभिक
ध्रुवों पर जमी हुई शताब्दियों के नीचे
दबे हुए एक सघन प्रस्तरीभूत हिमखंड की तरह
जिसे छू नहीं पाती है क़िताबें
कविताएं और संगीत
यहाँ तक कि प्रिया की संवेदनशील आँखें भी
नहीं अनुमान पाती हैं उसकी गहराई ।
मेरे प्रियजनो, मेरी कविताओ !
मैं खोलकर रख देना चाहता हूँ इस दर्द एक-एक का रेशा
तुम्हारे सामने
और इससे मुक्त हो जाना चाहता हूँ
पर मैं क्या करूँ
तुम्हारी सहानुभूति, तुम्हारी चोट, तुम्हारा प्यार
पहुँच ही नहीं पाता दर्द की इस गाँठ तक
कई बार उसके अस्तित्व तक से अनजान रहता है ।
उफ़ कहां समर्पित करूँ ?
पारे की तरह बोझल दर्द से लबालब भरी इस मंजूषा को
जो बनी रहती है मेरे गहरे से गहरे प्यार के आर-पार
मेरी ऊँची से ऊँची उड़ान की पहुँच के बाहर ।
नहीं, मात्र सुखी-सम्पन्न गृहस्थ जीवन
सफल प्रेम
स्निग्ध मैत्री सम्बन्ध
और साहित्य-सृजन का सन्तोष इसका इलाज नहीं है ।