खंडहरों को किसी का इंतज़ार नहीं--
न ही उन चिड़ियों का जो उड़ती
हैं इन खंडहरों के ऊपर--
बारिश का भी नहीं ।
न धूप का ।
न तारों का ।
खंडहरों को चिन्ता है तो
सिर्फ़ दीवारों को फोड़कर
उगे पौधों की
घास की
जिनसे बँधे हैं वे ।
खंडहरों को किसी का इंतज़ार नहीं--
न ही उन चिड़ियों का जो उड़ती
हैं इन खंडहरों के ऊपर--
बारिश का भी नहीं ।
न धूप का ।
न तारों का ।
खंडहरों को चिन्ता है तो
सिर्फ़ दीवारों को फोड़कर
उगे पौधों की
घास की
जिनसे बँधे हैं वे ।