Last modified on 5 जुलाई 2007, at 00:45

धूल / प्रयाग शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:45, 5 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल }} धूल म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


धूल में पड़ी रहती हैं बहुत सी चीज़ें ।

तिनके । टुकड़े कांच के । उड़कर कहीं से

चले आये मकड़ी के जाले के तार ।

पंख । चिट्ठियों के अक्षर ।

चमकती है धूल ।


फिर गिरती हैं

नन्हीं-नन्हीं बूँदें

उठती है धूल में पड़ी विस्मृत चीज़ों

से एक महक ।