कोहरे को
भेदकर
लटका है चँद्रमा
किसी तरह ।
आ-जा रहे हैं लोग
जैसे हो छायाएँ--
झूल रहा फटा
हुआ पोस्टर--
(इबारत को पढ़े कौन ?)
चुप गीली पत्तियाँ ।
बसें सरकती हुईं ।
पटरी पर ठंड में
मूंगफली
बेच रहा
लड़का ।
ठिठुरन--
ठिठुरन एक ।
कोहरे में--
शहर एक और ।