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हरकत / प्रयाग शुक्ल

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होती है हरकत

चीज़ों में

कई बार ।


अचानक टन्न से

बोल उठता है

बरतन एक ।


सरक कर गिर पड़ती है

मेज़ के किनारे से

कोई चीज़ ।


तहा कर रखे हुए कपड़े

न जाने कब

झुक आते हैं

आगे की ओर ।


न जाने कब तिरछी हो

जाती है तस्वीर ।

पलस्तर आ रहता है,

अटका हुआ,

नीचे ।


न जाने कब

चलते-चलते

मुड़ जाती है दिशा ।