Last modified on 7 जुलाई 2011, at 05:15

पानी बरसेगा / कविता वाचक्नवी

Kvachaknavee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:15, 7 जुलाई 2011 का अवतरण (वर्तनी सुधार)

पानी बरसेगा


सुनती हूँ - "पानी बरसेगा"
जंगल, नगर, ताल प्यासे हैं
मुरझाया पेड़ों का बाना।
इतने दिन का नागा करती
वर्षा की पायल की आहट
सुनने को पत्थर आकुल हैं
लोहा सारा गला हुआ है
उसको पानी में ढलना है,
सलवट-सलवट कटा हुआ
पैरों के नीचे
पृथ्वी का आँचल पुकारता
पानी....पानी....पानी....पानी....।

बादल अपने नियत समय पर
इसको
उसको
सबको
उनको
पानी देंगे
तब आएँगे।


अभी समय
नहीं आया है।

सुनती हूँ -
पानी बरसेगा.....।