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कभी भाला लेकर नहीं चला मैं, न ही कभी
काटा कोई सर,
गर्मियों और सर्दियों में
मैं गौरैया की तरह चला जाता हूँ उड़कर
भूख की नदी की ओर, पानी से बनी इसकी जादुई सरहदों की ओर ।
मेरी हुक़ूमत बनाती है पानी का रूप ।
मैं राज करता हूँ गैरहाज़िरी पर ।
राज करता हूँ ताज्जुब और तकलीफ़ में,
साफ़ मौसम और तूफ़ानों में ।
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मैं नज़दीक आऊँ या दूर चला जाऊँ ।
मेरी हुकूमत है रोशनी में
और धरती है मेरे घर का दरवाज़ा ।