Last modified on 5 जुलाई 2007, at 23:32

बात / प्रयाग शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:32, 5 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल }} उस बा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


उस बात के सिरे के लिए कोई

शब्द नहीं है शुरू में ।

और जितने आते हैं उन्हें हम एक-एक कर

अधूरा मानते हुए छोड़ने लगते हैं ।

हम कई चीज़ों को याद करते हैं

और पाते हैं कि वे उस बात के बीच

की नहीं हैं । यह एक लंबा सिलसिला है ।

अंत में हम उठ पड़ते हैं,

कापी कलम और सिगरेट का पैकेट

सँभालते ।