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कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से / गुलाब खंडेलवाल

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कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से
वे पास ही मिले हैं मगर दिल की राह से

कहने को तो हमें भी किया याद आपने
अच्छा था भूलना ही मगर इस निबाह से

मंज़िल हो आख़िरी यही, यह हो नहीं सकता
आगे गयी है राह इस आरामगाह से

देखेंगे हम भी अपने तड़पने का असर आज
पत्थर पिघल गये हैं सुना दिल की आह से

काँटों में दिल हमारा तड़पता है ज्यों गुलाब
क्या दुश्मनी थी आपकी इस बेगुनाह से