Last modified on 11 जुलाई 2011, at 09:53

टूट गिरी धूप की मुंडेर / कुमार रवींद्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:53, 11 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुरझाए फूलों को गिनते
             हो गई अबेर
आँगन में टूट गिरी धूप की मुंडेर
 
चन्दन की चौकी पर
लेट गयी साँझ
हल्के उजियारे में
रात हुई बाँझ
 
कोहरे में डूब गए काँपते कनेर
 
बर्फ़ीले पतझर को
कंधे पर लाद
हाँफ़ते रहे बरगद
सूरज के बाद
 
कोंपल को जिए हुए हुई बहुत देर
 
लहरों पर टिके-टिके
टूट गई नाव
पनघट पर खड़े रहे
पथरीले गाँव
 
दूर गए जल सारे रेत को बिखेर