Last modified on 11 जुलाई 2011, at 10:32

आदमक़द बौने / कुमार रवींद्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 11 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस बस्ती में आएँ
          कैसे मृगछौने
हत्यारे पंजे हैं - दाँव हैं घिनौने
 
घर-घर में बैठे हैं
मुँह-ढँके शिकारी
कब तक बच पाएगी
हिरनी बेचारी
 
ख़ून-भरे आँगन हैं - काँपते बिछौने
 
घूम रही गली-गली
है ख़ूनी टोली
जाने कब बीत गई
शिशुओं की बोली
 
दैत्यों के हाथों में हैं डरे ख़िलौने
 
घायल दिन-रातों का
दर्द कौन बाँचे
चेहरों के नीचे हैं
हत्या के साँचे
 
रहते हैं यहाँ सिर्फ़ आदमक़द बौने