गूँगी माँ<ref>कश्मीर के लोकभवन गाँव की लोक-स्मृति में रची-बसी एक गूँगी स्त्री.</ref>
कहते हैं गूँगी थी वह
लेकिन चिड़ियों से करती थी बातें
कहते हैं बहरी थी
परन्तु पेड़ झुक कर सुनाते उसे फ़रियाद
कहते हैं किसी काम की न थी
पर फूल चुनते देखी जाती गाँव में
लोग उसकी फटी झोली पर खाते तरस
कहते हैं तारामंडल उतरता
रात को उसमे
एक दिन ठेस दी उसे किसी ने
खाते हैं उसे चिड़ियाँ उड़कर ले गईं अपने साथ
कौन तुम ओ अनजान चिड़िया
हर दिन आ बैठती हो यहाँ निर्वासन में
मेरी स्मृति की खिड़की पर
मुझे याद आती है गूंगी माँ
पेड़.....
फूल....
तारामंडल...
और यह अभिशाप अपना
शब्दार्थ
<references/>