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जीवन-संध्या में आज, पथिक तुम थके और हारे-से हो / गुलाब खंडेलवाल

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जीवन-संध्या में आज, पथिक तुम थके और हारे-से हो
सित, मौन, विषण्ण, प्रभात-गगन के अस्तोन्मुख तारे-से हो
सुख-दुख की लहरों पर तिरती
क्षण-क्षण में उठ-उठ कर गिरती
नौका धूमिल तट पर फिरती जलनिधि मीठे-खारे से हो
तुम अपनी बाज़ी खेल चुके
सुख भोग चुके, दुख झेल चुके
तुम हो जग से बेमेल चुके पानी जैसे पारे से हो
आता वसंत अब नये पात
द्रुत दूर हटो तुम जीर्ण-गात
इस भव-तम-रजनी का प्रभात, नव-युग के जयकारे से हो