Last modified on 21 जुलाई 2011, at 15:31

जौहर / श्यामनारायण पाण्डेय / स्वप्न / पृष्ठ १

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 21 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामनारायण पाण्डेय |संग्रह=जौहर / श्यामनारायण…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आन पर जो मौत से मैदान लें,
गोलियों के लक्ष्य पर उर तान लें।
वीरसू चित्तौड़ गढ़ के वक्ष पर
जुट गए वे शत्रु के जो प्राण लें॥

म्यान में तलवार, मूँछें थी खड़ी,
दाढ़ियों के भाग दो ऐंठे हुए।
ज्योति आँखों में कटारी कमर में,
इस तरह सब वीर थे बैठे हुए॥

फूल जिनके महकते महमह मधुर
सुघर गुलदस्ते रखे थे लाल के।
मणीरतन की ज्योति भी क्या ज्योति थी
विहस मिल मिल रंग में करवाल के॥

चित्र वीरों के लटकते थे कहीं,
वीर प्रतिबिंबित कहीं तलवार में।
युद्ध की चित्रावली दीवाल पर,
वीरता थी खेलती दरबार में॥

बरछियों की तीव्र नोकों पर कहीं
शत्रुओं के शीश लटकाए गए।
बैरियों के हृदय में भाले घुसा
सामने महिपाल के लाए गए॥

कलित कोनों में रखी थीं मूर्त्तियाँ,
जो बनी थीं लाल मूँगों की अमर।
रौद्र उनके वदन पर था राजता,
हाथ में तलवार चाँदी की प्रखर॥

खिल रहे थे नील परदे द्वार पर,
मोतियों की झालरों से बन सुघर।
डाल पर गुलचाँदनी के फूल हों,
या अमित तारों भरे निशि के प्रहर॥

कमर में तलवार कर में दंड ले
संतरी प्रतिद्वार पर दो दो खड़े।
देख उनको भीति भी थी काँपती,
वस्त्र उनके थे विमल हीरों जड़े॥

संगमरमर के मनोहर मंच पर
कनक – निर्मित एक सिंहासन रहा।
दमकते पुखराज नग जो थे जड़े,
निज प्रभा से था प्रभाकर बन रहा॥

मृदुल उस पर एक आसन था बिछा,
मणिरतन के चमचमाते तार थे।
वीर राणा थे खड़े उस पर अभय,
लोचनों से चू रहे अंगार थे॥