Last modified on 22 जुलाई 2011, at 20:55

शहर बरसे हैं / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:55, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> कोपले…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोपलें
निकल आई हैं-
और रंग दिखाने
लगी हैं...!
सपनों का रंग
तितली
के पंखों पर
धर.... और
बस उड जा....।

धानी रंग
लिपटा ले
शहर आ
गया है!
मूल्यों पर
शहर बरसे है
कहर
बनकर...।