मुद्दत हुई है आपसे आँखें मिले हुए
इन सर्द घाटियों में कोई गुल खिले हुए
चमके न बाग़ में न किसी हार में गुँथे
कुछ फूल तो खिलकर भी यहाँ अनखिले हुए
ऐ आनेवाले! कुछ तो उधर की ख़बर बता
क्यों ख़त्म दोस्ती के सभी सिलसिले हुए!
क्यों दौड़ती रही हैं निगाहें उसी तरफ़
दिल के नहीं जो तार भी कुछ हों मिले हुए!
कहने को यों तो और भी कह देते कुछ गुलाब!
हैं होँठ मगर आज तो उनके सिले हुए