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सुपनां / हरीश बी० शर्मा

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सुपनां तो
करमां री कड़ी है
सुपनां देखण री लीक तो
ठेठ सूं पड़ी है
सुपनो देखणो
पण रात रो
जिको उठतै ही
कीं नूंवों करण रो सन्देसो लावै
करमां रै मारग-चालण री
दिस समझावै
अर दिन रा सुपनां
रातां खराब करै
नींद उचटावै
चिंत्या बधावै।