वे हमसे घृणा करते हैं मेरे भाई
क्योंकि हम भी चाहते हैं
उनकी ही तरह जीना
एक भरपूर जीवन
उनका वश नहीं चलता
नहीं तो
वे हवा को हमारी ओर
बहने नहीं देते
पर हवा बहती है
क्योंकि हवा
पहचानती है
आदमी और पेड़ और चिड़िया
हवा का प्यार
पेड़ और चिड़िया की तरह ही
आदमी से है
पर आदमी
हवा के सुखद प्रवाह में
कहाँ झूम पाता है पेड़ की तरह
कहाँ चहक पाता है
चिड़िया की तरह
आदमी
प्रकृति में विचरण कर
कहाँ देख पाता है
प्रकृति का सौन्दर्य
यह प्रकृति भी उनके लिए क्यों है भाई!
क्यों है इतना अंधेरा यहाँ
क्यों है उनके लिए दिन सोने का हिरण
और हमारे लिए बुझा-बुझा-सा
यह हमारी हार का दिन
है मेरे भाई!
पर नहीं संघर्ष का दिन
मर गया है
पर नहीं आवाज़ पर ताला लगा है
पर नहीं आक्रोश अपना थम गया है
(रचनाकाल :1980)