Last modified on 18 जुलाई 2007, at 23:37

सूर्य / भारत यायावर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 18 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत यायावर |संग्रह=हाल-बेहाल / भारत यायावर }} चिड़ियो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


चिड़ियों ने चहचहा कर

फूलों ने मुस्करा कर

ओस की बूंदों ने

स्वर्णिम आभा से चमक कर

हर रोज़ तुम्हारी अगवानी की

पर मैं क्यों नहीं कर पाया?

पूरा वर्ष उदास रहा और आभाहीन

अपने ही अंधेरे में दुबका हुआ

बाहर की उथल-पुथल

और शोर-शराबों को सुनता रहा

दुखी होता रहा और रोता रहा

बाहर निकलने से घबराता रहा

अब नए वर्ष में

नई आकांक्षा और आशा और उत्साह के साथ

तुम्हारा स्वागत करते हुए भी

मेरा हृदय

आशंकाओं का द्वीप बना हुआ है


(रचनाकाल : 1991)