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सिरजण / हरीश बी० शर्मा

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सिरजणो
अबै दोरो लागै
जे कीं मिळ जावै
सोरै सांस,
जे कीं बण जावै
अपणै-आप
ताक-झांक सूं
तो ठीक
नीं मिळै तो
तसियो नीं देखीजै
कांईं कमतर है
जद आगला करग्या
जांवता मोकळो सिरजण
नकलां सूं काम चलावणो
जाणां हां
समझां हां
जुग-नेम।