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लोकाचार / हरीश बी० शर्मा

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मतळब है जद
जमानो जाणै है
म्हैं जाणूं हूं
गरज घटतै ही
पिछाणनै सूं नट जासी
अर म्हैं
जाणतै-समझतै
लोकाचारै-जमानै सूं रैवणगत सीखूं
पूठ री बातां
बिसरा-बिसरा‘र
निभाव करूं हूं
भर्यां कंठां टेर लगाऊं
म्हारो भाई !
म्हारो जंवाई !!