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कवि / हरीश बी० शर्मा

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नांव रो सिरजक
नूंवै जुग रो जथारथ पुरसै
दो जूण री
आपरै तांई
दो रोटी पोवा‘र
थाळी पुरसा लेवै तो
लांठो समझो।