Last modified on 8 अगस्त 2011, at 17:09

गुरू / हरीश बी० शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:09, 8 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अंधारै अर उजाळै री
ओळखाण करा‘र
ऊजळै मारगां रा
पथिक बणावण्यो गुरू
आज चेलां नैं अंधारै सूं डरावै
अर उजाळै जावण जिसो नीं छौड़े
जे कोई गुरू आ करणी करै
तो चेलो कांईं कम है
गुरू नैं गुरू नीं समझै
बापड़ो गरीब गुरू अर छाकटा चेला
पिछाण, ओळखाण अर सनमान सूं
एक-दूजै नैं कांई लेणो-देणो,
एक माईतां नैं गोडा देवै
एक नूंवो जुग बणावै
दोनूं तीया-पांचा सीखै-सिखावै
अर रीत निभावै।