Last modified on 8 अगस्त 2011, at 17:41

काया / हरीश बी० शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:41, 8 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


एक सौ आठ मिणियां में
पिरोइज्योड़ी
धोळी-काळी
तुळछी-चन्दण, मोती का
काठ री माळा
जिकी मिळै
लख चोरासी में एक बार
घणखरा पार कर जावै
घणखरा फेर आवै है
भुगतण नैं
ओ संसार।