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कुछ अशआर / मुनव्वर राना

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दिल ऎसा कि सीधे किए जूते भी बड़ों के

जिद ऎसी कि ख़ुद ताज उठा कर नहीं पहना ।


चमक यूँ ही नहीं आती है ख़ुद्दारी के चेहरे पर

अना को हमने दो-दो वक़्त का फाका कराया है।


मुनव्वर माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,

जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती ।


बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर

माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है ।


एक निवाले के लिए मैंने जिसे मार दिया,

वह परिन्दा भी कई दिन का भूखा निकला ।