Last modified on 13 अगस्त 2011, at 14:06

दाखिला / त्रिलोक महावर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:06, 13 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक महावर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> झील के किनारे …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झील के किनारे
बने स्कूल में
एक बार फिर
दाख़िला ले लिया है मैंने

जूट के बस्ते में
एक नोट बुक, और कुछ नोट्स लिए
चल रहा हूँ कोलतार की सड़क पर
किसी ने नहीं थाम रखी है उँगली
न ही कोई लड़की पीछे से आकर
मारती है धक्का
न ही शर्माकर उठाती है
गिरा दुपट्टा
लेवेण्डर और पासपोर्ट की ख़ुशबू का
अहसास ही नहीं होता है

औचक ही आकर नहीं झगड़ती है
प्रिंसिपल की मोटी लड़की
चिकौटियों के दिन लद गए
किसी भी टीचर ने डाँट नहीं पिलाई
कोई हो हल्‍ला भी नहीं है क्लास में ।