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आमने-सामने / त्रिलोक महावर

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मुर्गे ख़ुद नहीं लड़ते
लड़ाए जाते हैं

मंड़ई में मुर्गे की टाँग में
बाँध दी जाती है छुरी
मैदान में आमने-सामने होते हैं मुर्गे
आदमी होते हैं मुर्गे के पीछे

ख़ौफ़नाक खेल शुरू होता है
मुर्गे भिड़ जाते हैं
एक-दूसरे से
दोनों ओर से आदमी
चीख़ते-चिल्लाते हैं जी भरके
लहूलुहान मुर्गे अगल-बगल
कुछ नहीं देखते

मुर्गे प्रशिक्षित हैं
जान लेने के लिए
एक मुर्गा जीतता है
दूसरा दम तोड़ता है
भीड़ हो-हल्ला़ मचाती है

जीतनेवाला आदमी
हारे हुए मुर्गे को लाद
चल पड़ता है
मैदान अभी खाली नहीं हुआ
तमाशबीनों से

फिर मुर्गे तैयार हैं
लड़ाए जाने के लिए