Last modified on 13 अगस्त 2011, at 14:59

प्रेम / कीर्ति चौधरी

तुमने हाथ पकड़कर कहा
तुम्हीं हो मेरे मित्र
तुम्हारे बग़ैर अधूरा हूँ मैं
क्या वह तुम्हारा प्रेम था ?

मैंने हाथ छुड़ाकर
मुँह फेर लिया
मेरी आँखों में आँसू थे
यह भी तो प्रेम था ।