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नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय

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अच्छा
बेटा तू इतना अकड़ता है
संतरी को
मंत्री होने पर रगड़ता है

फूँक मारते ही तू फूलेगा
फूलेगा तू
और एक ही दिन में
पचास वर्शःओं की कमी छू लेगा
कभी यहाँ
कभी वहाँ
मौसम के झूले पे झूलेगा

बातों की सिक्कड़ में बंधी
तेरी आत्मा
चोर दरवाज़ों से साँस लेगी
तहख़ानों में विश्राम करेगी

तू उड़ेगा भी, उड़ेगा तू
और बी‍ऽऽसवीं मंज़िल पर जाते-जाते
तू सब कुछ पा लेगा

मगर भूल मत बेटा
यही वो संतरी होग

तेरे इस्तीफ़े के बाद
तेरी पृष्ठभूमि में बाँस हकेलता
यही संतरी होगा
अगली सुबह तुझे इस कमरे से बाहर धकेलता
और थूकता तेरे ऊपर
अपने सपनों को आँख में बचाते
यही संतरी होगा

बताता हुआ कि संतरी
जनता का हिस्सा है
और मंत्री
चालीस चोरों का क़िस्सा ।