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वे जो / श्रीरंग

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वे जो
बहुत सुबह नहीं निकलते घर से बाहर
या फिर नहीं करते
किसी लाल गोले की पूजा
देर रात गए
जब महानगर की बसें चलनी बंद हो जाती हैं
कमरों में सिटकनी लगाकर
चित्त हो जाता है महानगर
लौटते हैं घर
और बची-खुची रात
उड़ेल देते हैं औरतों के संसार में ......

वे जो
नुक्कड़ पर सारा दिन
दुनिया के सर्वोत्तम महामहिमों के
पाजामें का नाड़ा खोलने में
बिताते हैं/खाते हैं लाई चना
खाते रहते हैं पान
या फिर दबा लेते हैं होंठों के नीचे सुर्ती
अनगिनत चाय की प्यालियाँ
झोंकते रहते हैं पेट की भट्टी में ........

वे जो
बहुत गंभीर होने पर
जोरदार ठहाका लगाते हैं/पीटने लगते हैं मेज
बातों-ही-बातों में
समुद्र के अथाह अपार जल को
हजारों फिट ऊपर उछालने में
तनिक विचलित नहीं होते
आम-आदमी के पक्षधर
वे जो
दाढ़ी को उल्टे ताज की तरह धारण करते हैं
जिनकी दाढ़ी के एक बाल से
लेखपाल कर सकता है
हजार बार धरती की पैमाइश ...........

वे जो केवल
आग की तरह गर्म
हवा की तरह आकारहीन या
पानी की तरह पतले नहीं होते
उनके ही शब्दों की पीठ पर
यात्रा करते हैं विचार
नुक्कड़ से नोमपेन्ह तक ......।