Last modified on 7 सितम्बर 2011, at 10:16

सोन-मछरिया / रमेश तैलंग

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:16, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=इक्यावन बालगीत / रमेश तैलंग }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ताल में जी ताल में
सोन-मछरिया ताल में ।
मछुआरे ने मंतर फूँका
जाल गया पाताल में ।

थर-थर काँपा ताल का पानी,
फँसी जाल में मछली रानी,
तड़प-तड़प कर सोन-मछरिया
मछुआरे से बोली- भैया !
मुझे निकालो, मुझे निकालो
दम घुटता है जाल में !

मछुआरे नेस ोचा पल भर,
कहा, ’छोड़ दूँ तुझे मैं अगर
उदअ जाएगा दाना-पानी
क्या होगा फिर मछली रानी ?
मछली बोली, रोती-रोती-
’मेरे पास पड़े कुछ मोती
जल में छोड़ो, ले आऊँगी,
सारे तुझको दे जाऊँगी ।’

मछुआरे को बात जँच गई
बस, मछली की जान बच गई,
मछुआरे को मोती देकर
जल में फुदकी जल की रानी !
सोनमछरिया-मछुआरे की
ख़त्म हुई इस तरह कहानी ।