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पाती / रवि प्रकाश

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कैसे पढूं ये पाती

जो लिखी हैं पुरुवा हवाओं पर

ताज़ा और टटके जज्बात

मेरे इस शहर को शहर को बनाने तक

पड़ चुके होंगे पुराने

और मौसम बदल चूका होगा मेरे गाँव का !


सारे आंसू समां गए होंगे

चटकती हुई धरती की दरारों में

खेतों की सींचने में

शब्दों के कल्ले कैसे फूटेंगे

सूखे हुए पपडीदार होंठो पर

ऐसे में पुरुवा हवांए

पेंड़ो की पुंगियों से जमीन पर सरक जायेंगी

छोड़ देंगी तैरकर बटोरना संवेदनाओं को

ऐसे में दादी तुम और तुम

सिर्फ ईश्वर से प्रार्थना कर सकोगी

मैं जहाँ होऊं

सुखी और शांत होऊ!