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च्यूइंगम / हरीश बी० शर्मा

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धार गंवाई, पार गंवाया
सींक सहारे चलते-चलते
कितनीं नावें, कितनी लहरें
कितने ही आकाश गंवाए
जीवन मेरा सांझा चूल्हा
बचा भरोसा, निपट अकेला
डपट गया अंदर से कोई
और मैंने अल्फाज गंवाए
बादल जो हिस्से में आए
कोरों से हमने टपकाए
तन्हाई के आसमान पर
तारीखों के चांद उगाए
च्यूइंगम कर जीवन को जीया
कितने पल सूं ही रपटाए।