Last modified on 8 सितम्बर 2011, at 17:13

सम्मोह/ सजीव सारथी

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सजीव सारथी |संग्रह=एक पल की उम्र लेकर / सजीव सार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सपनों के पंखों से जुड़ने लगता है मन,
रंग भरे अम्बर में उड़ने लगता है मन,
ऐसा है तेरे इन नैनों का सम्मोहन,
ऐसा है तेरे इन नैनों का सम्मोहन.

दो झिलमिलाते नगीने हैं,
या रोशनी का झुरमुट है ,
है धूप के दो झरोखे ये ,
या जुगनुओं का जमघट है .

चूम ले एक नज़र तो
जगमगाता है मन,
रातों को बन के सितारा
टिमटिमाता है मन,

ऐसा है तेरे इन नैनों का सम्मोहन,
ऐसा है तेरे इन नैनों का सम्मोहन

झीलें हैं दो मधुशालों की,
डूबी सी जिनमे दिल की बस्ती है,
नीले भंवर हैं दो गहरे से,
लहरों में भीनी-भीनी मस्ती है ,

होंठों से जो चख ले तो,
बहने लगता है मन,
दो घूंट में ही नशे में,
लड़खडाता है मन,

ऐसा है तेरे इन नैनों का सम्मोहन,
ऐसा है तेरे इन नैनों का सम्मोहन...

  • स्वरबद्ध गीत, अल्बम – पहला सुर, संगीत- जे एम् सोरेन