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मैं हर कहीं/ सजीव सारथी

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सरहद की चोटी से लेकर
सागर की गोद तक,
बिखरा हूँ जर्रा जर्रा,
मैं हर कहीं.

कहीं खुशबू में हूँ सावन की,
कहीं बसंत की महकार हूँ,
कहीं होली के रंगों में डूबा,
कहीं ईद का त्यौहार हूँ,
कहीं तबले के ताल की मस्ती,
कहीं पायल की झंकार हूँ,
कहीं गाँवों में खेतों को जोतता,
कहीं शहरों की भरमार हूँ,
सब धर्मों की मुझमें झलकी,
हर मजहब का मैं प्यार हूँ,

मैं भारत का एक बाशिंदा,
मैं भारत की सरकार हूँ...