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डायर/ सजीव सारथी

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जिंदगी भी एक डायरी है,
जिसके कोरे पन्नों पर,
कोई अपनी कवितायें लिखता है,
नीचे अपने हस्ताक्षर करता है,
उसके शब्द, उसकी रोशनी,
उसकी खुशबू, उसका नूर.
मेरी रूह में,
अचानक कोई एक पल,
कोई एक लम्हा,
जगमगा उठता है,
नींद से जाग उठता है

कोई दिन यूँ तन्हा गुजरता है,
एक कवि के साथ,
कोई दिन मगर,
यूहीं भटकता है,
भीड़ में गुम, चेहरों से घिरा,
विचारों से शून्य खलाओं में,
जिंदगी की भाग दौड में,
इतना आगे निकल जाता है,
कि लौट नहीं पाता फिर अपने तक,
भरा भरा, लुटा पिटा,
कोई दिन गुजरता है –

कुछ पन्ने यूँ, कोरे ही पलट जाते हैं...