Last modified on 9 सितम्बर 2011, at 12:35

रूटीन / हरीश बी० शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:35, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


लोरियों की लयकारी
हौले-हौले थपकियां
ठाकर
लाजिमी है तेरा पौढ़ना
लेकिन
तेरे सुदामा-ग्वाले भूखे सोये हैं
मंगताई से भी जब पार नहीं पड़ी
भूख से खूब रोये हैं
तेरे नाम की टेर भी लगाई कन्हाई
वैसे ये रूटीन है
अब मावड़ी की बारी ही
दिन-भर की भूखी
अब दूजों की भूख मिटाएगी
तब रेट मिलेगी
तुम्हारे राजभोग के साथ
उन्हें भी रोटी नसीब हो जाएगी।