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पानी / हरीश बी० शर्मा

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रेत में
तलाश करते पानी के सोते
पूरी हो जाती है उमर
जब सी सोते में
धकेल देता है कोई
मिल जाता है पानी
पूरी हो जाती है तलाश
हाथ आ जाती है गहराई अपनी
यह एहसास
नहीं होता तो अच्छा था
तलाश चलती रहती
उम्र पूरी भी होती, सहानुभूति तो मिलती।