♦ रचनाकार: अज्ञात
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कमल नयन परदेस हे भावनि
राम लखन सिया वन वन के सिधारल, धय लेल तापसि के भेष, हे भावनि कमलनयन परदेस
वन पग आसन वन पग भोजन, वन-वन रहति नरेश हे, भावनि कमल नयन परदेस
अवध अन्हार भेल एक रघुपति बिनु, जैसे वन लागत कुदेस, हे भावनि कमल नयन परदेस
मातु कैशल्या करूणा करत हे, क्यों नहीं कहत उद्देस, हे भावनि कमल नयन परदेस
तुलसीदास प्रभु तुम्हरे दरस को जाही वन उगल दिनेस, हे भवनि कमल नयन परदेस
यह गीत श्रीमति रीता मिश्र की डायरी से