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दाल / महेश चंद्र पुनेठा

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दाल
बस केवल दाल
कहाँ गई भट की चुड़कानी
कहाँ पिसे भट की सब्जी
कहाँ भट का भटिया
कहाँ मसूर -गहत के डुबके
कहाँ माँस-ककड़ी से मिलकर बनी बड़ी
कहाँ गया नवौ का साग
कहाँ पिनौ का थेचुवा
जैसे इकहरी दुनिया होती जा रही
हो चली रसोई भी हमारी इकहरी

रसोई से भाग
जाने कहाँ चले गए ये स्वाद
रंग-रूप बदलकर क्या
जा बैठे हैं
पंच-सितारा होटलों में

पत्नी पूछ रही है माँ से
कैसे बनती है चुड़कानी
और बेटी पूछती मुझसे
पापा! क्या होते हैं डुबके
और मैं भी करता हूँ कोशिश
कुछ देर याद कर उसे बतलाने की ।