Last modified on 15 सितम्बर 2011, at 10:32

परिचय / शैलेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ये हज़ारों-हज़ार फूल फ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये हज़ारों-हज़ार फूल
फूलों में बुराँस
उदासियों में ओज भरता हुआ...

ये हज़ारों-हज़ार फल
फलों में काफ़ल
रास्तों को चंगा करता हुआ...

ये हज़ारों-हज़ार हवाएँ
हवाओं में सबसे पवित्र और शीतल
घाम को मुँहतोड़ जवाब देती हुई...

इसीलिए यहाँ दिलों में भी एक झरना है
आक्षितिज प्यास बुझाता हुआ...

दर‍असल यह दुनिया की सबसे ऊँची ऊँचाई
यानी हिमालय
और मैं यहीं से बोल रहा हूँ...