मजरुह सुल्तानपुरी हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं ।मजरूह तरक्की पसंद तहरीक के उर्दू के सबसे बड़े शायर थे। उन्होïने अपनी रचनाओï के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया है ये लब्बोलुआब है। ये सारांश है गनपत सहाय परास्नातक कालेज मेï 'मजरूह सुल्तानपुरी गजल के आइने मेï' विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयोï के शिक्षाविदोï ने इस सेमिनार मेï हिस्सा लिया और कहा कि वे ऐसी शख्सियत थे। जिन्होïने उर्दू को एक नयी ऊंचाई दी है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा गनपत सहाय कालेज मेï मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। लखनऊ विश्वविद्यालय की उर्दू विभागाध्यक्ष डा.सीमा रिजवी की अध्यक्षता व गनपत सहाय कालेज की उर्दू विभागाध्यक्ष डा.जेबा महमूद के संयोजन मेï राष्ट्रीय सेमिनार को सम्बोधित करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो.अली अहमद फातिमी ने कहा मजरूह सुल्तानपुर मेï पैदा हुए और उनके शायरी मेï यहां की झलक साफ मिलती है। वे इस देश के ऐसी तरक्की पसंद शायर हैï जिनकी वजह से उर्दू को नया मुकाम हासिल हुआ। उनकी मशहूर लाइनों 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये और करवां बनता गया' का जिक्र भी वक्ताओं ने किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.मलिक जादा मंजूर अहमद ने कहा कि यूजीसी ने मजरूह पर राष्ट्रीय सेमिनार उनकी जन्मस्थली सुल्तानपुर में आयोजित करके एक नयी दिशा दी है।